मेरी बहन " निहारिका " को श्रद्धांजलि...............
मुझे मेरे गुनाहों की सजा तो दो कोई ,
मैं एक लाश हू ,मुझे जरा दफना दो कोई,
क्या मिलेगा तुझे इस बेरहम खुदाई से,
अब किसी की भी न बंदगी करो कोई ,
हमने हमेशा ही खुद को रोते हुए देखा ,
फिर भी दिलकशी की जरुरत न मुझे कोई ,
उसे अब इल्म नहीं रहा अच्छाई और बुराई का,
उसकी रहबरी पे यकीं न करो कोई ,
अब आदत सी हो गयी है मुझको गमो की ,
रहमत न चाहिए मुझको और न भलाई कोई ,
चीखा था अपने ग़मों से तड़पकर जब "अंजुम" ,
दूर तलक मुझको न पड़ा दिखाई कोई- कुलदीप अन्जुम
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