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हसरतें मत पाल बिखर जायेगा
ये नशा , जल्द उतर जायेगा
छोड़ दूँ कैसे अजमत को मैं
जाते जाते ही असर जायेगा
- कुलदीप अन्जुम
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Wednesday, October 28, 2009
अब मैं तेरा ख्वाहिशमंद नहीं .......
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ये खुशबू , कि तेरी खुसबू जो अब मूझे पसंद नहीं
जा दूर जा ऐ वेबफा अब मैं तेरा ख्वाहिशमंद नहीं
-कुलदीप अन्जुम
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ये खुशबू , कि तेरी खुसबू जो अब मूझे पसंद नहीं
जा दूर जा ऐ वेबफा अब मैं तेरा ख्वाहिशमंद नहीं
-कुलदीप अन्जुम
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फजूल ही तेरे गम से मुलाक़ात है
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तेरी बेरुखी काम आ जाये तो कुछ बात है
वरना फजूल ही तेरे गम से मुलाक़ात है
- कुलदीप अन्जुम
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तेरी बेरुखी काम आ जाये तो कुछ बात है
वरना फजूल ही तेरे गम से मुलाक़ात है
- कुलदीप अन्जुम
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खुदा है कठघरे में.....
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आज इक कत्ल करके खुदा है कठघरे में
क्या मुक़र्रर हो सजा , ज़माना मशवरे में
- कुलदीप अन्जुम
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आज इक कत्ल करके खुदा है कठघरे में
क्या मुक़र्रर हो सजा , ज़माना मशवरे में
- कुलदीप अन्जुम
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Saturday, October 24, 2009
मेरी परछाई ....
जब भी हाथ बढ़ाऊं
तुझे छूने को
तू दूर खिसक जाती
और जब ......
हो जाऊँ परीशां
दूर जाने की करूँ
कोशिश ....
तू चली आती है
रिझाने को पीछे -पीछे
कर्त्तव्य से करने को
विमुख
बदलते वक़्त के साथ
बदलती हूई
तू भी बेवफा
हर शक्श की तरह
ऐ मेरी परछाई !
- कुलदीप अन्जुम
Thursday, October 15, 2009
उन वाकयों पे हम शरमायेंगे उम्र भर .........
तेरी नज़र से गिरके ना उठ पाएंगे उम्र भर
ये वो मरहला है जिस पे पछतायेंगे उम्र भर
सितमगर अजमा ले तू भी अपना जोरो दम
हर ज़ुल्म को सहेंगे औ मुस्कुराएंगे उम्र भर
पैदाइश के वक़्त गरीब को थी क्या खबर
कि ये लोग रोटियों को तरसायेंगे उम्र भर
क्या बात हूई ऐसी कि सितमगर तड़प उठा
खैर उसकी सलामती को मनाएंगे उम्र भर
जब तक हर मरहूम को हक उसका ना मिले
हम बारूद सा कलाम सुनायेंगे उम्र भर
देगा नहींखुदा जब तक हर जख्म का हिसाब
हम घर पे रिन्दों को पिलायेंगे उम्र भर
कुछ वाकये ऐसे अन्जुम तेरी दास्ताँ में है
कि उन वाकयों पे हम शरमायेंगे उम्र भर
- कुलदीप अन्जुम
Thursday, October 8, 2009
कर लिया हमने मसर्रत का इंतजाम है ...
हवाए - सर्द को अब मेरा यही पैगाम है
कर लिया हमने मसर्रत का इंतजाम है
दवाए तरके -ताल्लुकात ले चुका हूँ मैं
मरीजे - इश्क को अब पूरा आराम है
देवता रखने लगे हर शख्श के कद का हिसाब
क्या मसीहाई भी हूई दौलत ही की गुलाम है
दूर हट नापाक ऐ शेखो शाह के कशीदाकर
किसी पेशगी का मुन्तजिर नहीं मेरा कलाम है
क्या हुआ की बदल गयी शहर की आवो हवा
सहमी हूई हर सहर है दहशतजदा हर शाम है
हवाए तरक्की ने मेरा आंगन बुहारा इस कदर
की अब नहीं मिलता यहाँ कोई निशाने गाम है
- कुलदीप अन्जुम
Sunday, October 4, 2009
भारत के खेवनहार उठो ....
मजदूर उठो औ किसान उठो
ऐ मेहनतकश इन्सान उठो
अब वक़्त तुम्हारा है यारों
लेने अपना सम्मान उठो
ऐ मेहनतकश इन्सान उठो
हर मुश्किल का मुह तोड़ो तुम
दुर्दिन से लड़ना छोडो तुम
मत देखो यूँ होकर बेबस
ऐ भारत के खेवनहार उठो
ऐ मेहनतकश इन्सान उठो
कब तक यूँही सहते जाओगे
प्यासों को रक्त पिलाओगे
छोडो मजबूरी का दामन
करने को अस्त्र संधान उठो
ऐ भारत के खेवनहार उठो
आहों को चिंगारी में बदलो
खुरपी को कटारी में बदलो
इस नवयुग में नवक्रांति का
रचने को नया विधान उठो
ऐ भारत के खेवनहार उठो
- कुलदीप अन्जुम
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