क्या अजब काम खैरख्वाही भी !
लूट के साथ रहनुमाई भी !!
है पशेमाँ बहुत खुदा अबके !
लोग कोसें भी, दें दुहाई भी !!
हाकिमे वक़्त ने सुना ही नही !
वक़्त रोया, कसम उठाई भी !!
वक़्त रोया, कसम उठाई भी !!
ज़ुल्म की इन्तिहाँ तो कुछ होगी
खुश नहीं अब तो आततायी भी !
और क्या चाहिए तुझे उससे !
होश है , साथ लब-कुशाई भी !!
- कुलदीप अंजुम