Friday, June 22, 2012

क्या अजब काम खैरख्वाही भी !



क्या अजब काम खैरख्वाही भी !
लूट के साथ रहनुमाई भी !!

है पशेमाँ बहुत खुदा अबके !
लोग कोसें भी, दें दुहाई भी !!

हाकिमे वक़्त ने सुना ही नही !
वक़्त रोया, कसम उठाई भी !!


ज़ुल्म की इन्तिहाँ तो कुछ  होगी
खुश नहीं अब तो आततायी भी !

और क्या चाहिए तुझे उससे !
होश है , साथ लब-कुशाई भी !!

- कुलदीप अंजुम 

Tuesday, June 12, 2012

गेंहूँ बनाम गुलाब




निजाम के बदलने के साथ
रवायतें बदलने की रस्म में 
सब कुछ तेज़ी से बदला 
पिछली बार की तरह ....
खेत खेत जाके 
ढूंढा गया गेंहू 
उखाड़ फेंकने के लिए 
रोपा गया कृपापात्र गुलाब.....
उस अधमरे गेहूं के लिए
कोई और जगह न थी 
सिवाए मेरे 
कविता के छोटे से खेत के 
जो उसे जिंदा तो रख सकता था 
खुश नहीं ......!!

- कुलदीप अंजुम