इन्सान और जिंदगी
क़े बीच की जंग
शाश्वत और ऐतिहासिक है
यदि केवल कर्म ही
इस प्रतिस्पर्धा का
आधार होता तो
सुनिश्चित सी थी
इन्सान की जीत ,
मगर इस जंग के
अपने कुछ एकतरफा उसूल हैं ,
भूख , परिवार ,परम्पराएं
मजबूरी ,समाज, जिम्मेदारियां
खींच देते हैं
हौसलों क़े सामने
इक लक्छ्मन रेखा
और फिर
कर्म का फल भी
तो हमेशा नहीं मिलता ,
लटकती रहती है
भाग्य की तलवार
दमतोड़ देते हैं हसले
घट जाती है
जीवटता के
जीतने की प्रत्याशा
- कुलदीप अन्जुम