Tuesday, April 28, 2009

वादा करो.......


(यह चंद अल्फाज़ मैं मृत्युसे संघर्षरत अपनी बहन " निहारिका " को समर्पित करता हूँ, )

क्यों जाने की जिद कर रही हो ,
क्या अभी तुमको आए अरसा हुआ है?

रूककर जहाँ को जरा देख लो तुम ,
जहाँ में भी कभी कुछ अच्छा हुआ है

हमारा आशियाँ तुम उजाडो न ऐसे ,
अभी तो कुहासा कुछ हल्का हुआ है

एक वादा जरा रुकने का कर दो तो क्या है
हमेशा तुम्हारा भरोसा हुआ है


- कुलदीप अन्जुम

आम चुनावों की साँझ पर दो शब्द कहता हूँ.....


सुबह को कहते हैं कुछ शाम को कुछ और होता ,
क्या अजब बहरूपिये हैं , हाय ! भारत तेरे नेता


- कुलदीप अन्जुम

नज़्म : इक समझौता ज़िन्दगी से ..........



हम सरे-राह ज़िन्दगी की उंगली पकड़ चलते रहे ,
न ही डर लगा न चौंके कभी ,बस मुकामों तलक बढ़ते रहे,

कभी शिकवा न किया हमने बेदर्द ज़माने से ,
कोई चूका भी नही हमे पल पल आजमाने से ,
हम मगर खामोशी से अपने आप से लड़ते रहे ,

अब लिया है ओढ़ हमने बेहयाई का कफ़न,
अब भला , कोई भी , कुछ भी , मुझको क्या कहता रहे ,

यूँ तो हमपर ज़ुल्म का एक सिलसिला चलता रहा ,
और हम बेचारगी से हर सितम सहते रहे,

पर लगा "अंजुम " ये अक्सर रास्ता है कुछ अजब ,
देखकर न कोई किनारा, मौन हो बहते रहे,
न ही कुछ कहा ,न ही कुछ सुना, चुपचाप देखते रहे

- कुलदीप अन्जुम

Sunday, April 26, 2009

नज़्म : दिल पड़ोसी है


दिल पड़ोसी है , हर वक्त मेरे दिल का हाल लेता है,
हम कहें न कहें हर बात जान लेता है,

अक्सर होती हैं मेरी भी तकरारें उससे,पर
वो बाद में अपनी गलती भी मान लेता है,

जब भी घबराता हूँ मैं अपनी तनहाइयों में घिरकर
वो तुरत आगे आ कांपते हाथो को थाम लेता है,

छोड़ देता है कभी कभी ऐसे मुकामों पर मुझे ,
कि मानों मुझसे कोई पुराना इंतकाम लेता हो ,
थोड़ा नटखट है ,थोड़ा चंचल और थोड़ा वाबरा भी है यह
पर देखकर रोते हुए किसी को अक्सर ख़ुद को थाम लेता है

- कुलदीप अन्जुम


Saturday, April 25, 2009

अनजानी राहों पर .......



अनजान रास्तो पर अनजान काफिले हैं ,
जानते नही कुछ फ़िर भी तो चल पड़े हैं ,

कोई नही है रहबर , न कोई रकीब मेरा ,
हर मोड़ पर यहाँ तो बस अजनबी खड़े हैं ,

न रहजनों का डर है न, कोई खलिश सी दिल में,

हर वक्त काफिले यहाँ लुटते ही जो रहे हैं,

कुछ तो गिला है मुझको फ़िर भी उन दोस्तों से ,

मेरे जनाजों में अक्सर हँसते वो क्यों रहे हैं ?

- कुलदीप अन्जुम

Wednesday, April 22, 2009

अच्छा नही लगता....


मेरी आवारगी भी अब मुझे अच्छी नही लगती,
तेरी दीवानगी भी अब मुझे अच्छी नही लगती,

ज़ुल्म जो कर दिए हमने कभी न चाहकर भी,
उन परअपनी शर्मिंदगी भी अच्छी नही लगती,

ज़ोर देता है की तू अक्सर अपने अल्फाज़ पर,
पर मुझे तेरी आवाज़ भी अच्छी नही लगती,

रोज़ ही होता है यहाँ मेरा खूने - जिगर कि,
अब मुझे कोई चोट भी तीखी नही लगती ,

तू पुराने जख्मो को भरने कि कोशिश न कर
कि अब मुझे मरहमे-वफ़ा अच्छी नही लगती,

मैं चला हु अब बंद - तंग गलियों की तरफ़ ,
की अब मुझे आवो- हवा अच्छी नही लगती,

घिर गया है "अंजुम" अपने झूठों में कुछ इस कदर,
कि कोई भी बात मुझे सच्ची नही लगती
- कुलदीप अन्जुम

Sunday, April 19, 2009

मैं क्या करूं .........



भावनाओ का समंदर अब थामे थमता नही ,
क्या करूं और कहां जाऊँ, दिल कही लगता नहीं

हर अश्क तेरी याद का अब पलकों पर रुकता नही,
कैसी यह बेबसी की इनको मैं गिरा सकता नही

सोचा था एक जहाँ होगा अपने खयालो का भी यहाँ ,
पर क्या करूं कि मैं कुदरत को बदल सकता नही

अब नही मुझको यकीं है जिंदगी सी चीज में,
ए खुदा मैं अपनी मर्ज़ी से मर भी तो सकता नही

कह रहे हैं सब यहाँ कि छोड़ दो यादों को अब,
पर अपने फर्जो- बफाओं से मैं मुकर सकता नही

हो गई है इन्तिहाँ अब मेरे सब्र कि " अंजुम ",
ग़म का यह सैलाब अब रोके मेरे रुकता नही
भावनाओ का .....................................

- कुलदीप अन्जुम

बदनाम मयखाने हुए



अब नही मिलते जहाँ में ,
लोग कुछ सुलझे हुए

जिस तरफ़ देखो जहाँ भी ,
हैं सभी उलझे हुए

अपने ग़म हैं , अपनी खुशी है ,
अपने अफसाने हुए ,

कुछ भरी महफिल में ,
अपनों में भी बेगाने हुए

है यहाँ किसको ख़बर अब ,
सब तो परवाने हुए

देख " अंजुम " इस जहाँ में ,
कैसे कैसे अफसाने हुए ?

पीते हैं यहाँ लोग पर ,
बदनाम मयखाने हुए


- कुलदीप अन्जुम

Saturday, April 18, 2009

हम अपना दर्द सुनाएँ क्या



वह पूछ रहे हैं हाले - दिल ,
हम अपना दर्द सुनाएँ क्या ?

जब ख़ुद हमको ही ख़बर नही ,
तो औरों को बतलाएं क्या ?

हर धड़कन ही किस्सा कहती हैं ,
दुनिया से आज छुपायें क्या ?

जब अपने ही न साथ चले ,
तो गैरों को आजमायें क्या ?

मुझको ख़ुद से ही इश्क नही ,
तो औरों पर फरमाएं क्या ?

जो टूट गया था बनते ही ,
हम वह अफसाना गायें क्या ?

जब पत्थर दिल हैं लोग यहाँ ,
तो दर्दे - जिगर सुनाएँ क्या ?

हर बस्ती में बदनाम हुए ,
अब "अंजुम " आंख चुराएँ क्या ?


- कुलदीप अन्जुम

Friday, April 17, 2009

मेरा परिचय


तुम पूछ रहे हो परिचय क्या ,
मैं ख्वाब हूँ कोई तथ्य नही ,

मैं आशा हूँ ,अभिलाषा हूँ ,
कोई जीवन का सत्य नही ,

मैं हिस्सा नही हकीक़त का,
एक मीठी सी अंगडाई हूँ ,

मैं नव बसंत की कोंपल हूँ,
और पतझड़ की रुसवाई भी ,

मैं इस दुनिया के साथ भी हूँ ,
और "अंजुम " की तन्हाई भी


- कुलदीप अन्जुम