Saturday, March 5, 2011

"मछुआरी है ज़िन्दगी " !!


अगर आप उत्तर भारत में ही रमे रहे हों तो चेन्नई में आपके जानने के लिए बहुत कुछ है ! ३१ अगस्त को जब सबको अपनी नयी तैनाती की जगह का पता चला तो कोहराम मच गया ! कारण की जादातर उत्तर प्रदेश वासियों को चेन्नई में जगह दी गयी थी , वो भी महिंद्रा सिटी जैसी जगह जो शहर से ५० किलोमीटर दूर है !
लड़कियों ने लम्बे लम्बे आंसू बहा डाले लेकिन सब बेनतीजा ! आखिर हमने चेन्नई जाने की तैयारी शुरू कर दी !६ महीने तक मैसूर जैसे खुशनुमा शहर और इन्फोसिस के दुबई नुमा महल से निकल कर चेन्नई की गरम आवोहवा में जाने का दर्द कोई कम नहीं था ! लेकिन इस नए शहर में मेरे लिए काफी कुछ नया था !
मद्रास के बारे में दादा जी से काफी सुना था लेकिन साहबान अब ये मद्रास मद्रास न रहा , चेन्नई हो गया है ! शायद आधुनिकता का चोला ओढने की कड़ी में नाम बदलना पहली रस्म थी ! हाँ दुरुस्त फ़रमाया ! चेन्नई मद्रास से आधुनिक है ! खैर शहरे मद्रास के बारे में फिर कभी तफसील से बातें होंगी !
यूँ तो कई मुशिक्लातें दो चार हुयी पर जो सबसे खास थी वो भाषा की थी , हम ठहरे हिंदी के जानबकार और टूटी फूटी अंग्रेजी बोलने वाले :-) ! लोग यहाँ अंग्रेजी तो जानते हैं पर हिंदी से पुराना बैर है ! खैर हर जगह तो अंग्रेजी से काम नहीं चलता तो तमिल सीखने की इक्क्षा हुयी ! खुशकिस्मती की कंपनी ने मुश्किल समझी और तमिल कक्षायों की व्यवस्था की ! यकीं मानिये काफी ज़ज्बा होने के बाबजूद चौटे दिन कक्षा में नहीं घुस पाया और दिल ने बिना किसी ना नुकुर के एकतरफा हार मान ली !
खैर मैं भी कहा आपको अपनी रामकथा सुनाने बैठ गया ! असल बात ये नहीं है बात कुछ और ही है और खास है ! तो नए शहर में ठिकाना ढूंढने के बाद रोज लोकल से ऑफिस जाने का सिलसिला शुरू हो गया ! आमतौर पर रेल में जादा भीड़ नहीं होती थी पर ज्यूँ ज्यूँ गरमी बढ़ने लगी सुबह तडके जाने वाली ट्रेन में भीड़ भी बढने लगी ! एक दिन किसी तरह वेंडर डिब्बे में घुसने की जगह मिल गयी तो मछलियों की मन्द मंद गंध तंग करने लगी ! अगले २ स्टेशन पर ट्रेन पूरी ख़ाली थी ! असल में थोडा आगे एस आर ऍम यूनिवर्सिटी है जादातर भीड़ या तो इन स्टुडेंट्स की होती है या महिंद्रा सिटी के इन्फोसिस कैम्पस में काम करने वाले १३ हज़ार सूचना प्रोद्योगिकी के जानकारों की ! खैर जब भीड़ हलकी हुयी तो आस पास की बसावट पर नज़र गयी तो पास ही गेट के पास एक मछुआरा दंपत्ति बैठा दिखा , एक बड़ी सी टोकरी लिए ! मछलियों से पूरी तरह भरी हुयी बाकायदा बर्फ लगा के पुख्ता इंतजाम के साथ ! न जाने क्यूँ बात करने को जी चाहा पर फिर वही मुश्किल ! उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी और हमें तमिल ! भला हो एक तमिल भाषी दोस्त का जो साथ ही थी ! उसने काफी मदद की ! पता चला की दम्म्पत्ति दिनभर मछलियाँ पकड़ते और तब जाके शाम को खाने और पहनने का जुगाड़ हो पाता ! आम तौर पर पुरुष मछलियाँ पकड़ता और महिला उन्हें दूर के छोटे बाज़ार में बेंचती ! बताते बताते उस मछुयारे की आँखों से दर्द झलक आया कि सुबह को निकलते हैं तो शाम को वापस लौटने की कोई खबर नहीं रहती ! हर उस दिन को अच्छा समझा जाता है जिस दिन वो सही सलामत वापस लौट आता है ! महिला भी पीछे न रही बोली कि लोग सारी मोलभाव मेरी मछलियों के लिए ही बचाकर रखते हैं ! कमबख्त ये भी नहीं समझते कितनी मेहनत लगाती है इन्हें पकड़ने में ! दोनों की हालत बिलकुल भी ठीक नहीं लग रही थी ! उनकी आँखों में गौर से देखा तो मुझे उम्मीद नाम की कोई किरण दूर दूर तक नज़र नहीं आई जैसा मनमोहन और करूणानिधि की सरकारों के इश्तिहार वयां करते हैं ! इतने में मेरा स्टेशन आ गया ! उतरे और रोज की भीड़ में शामिल हो गए ! ओवरब्रिज तक पहुंचते पहुंचते १० मिनट लग गए महिंद्रा सिटी पर ट्रेन रुकने पर नज़ारा बंगलोर के किसी स्टेशन से कम नहीं होता ! ओवरब्रिज पर ही दो सहयोगियों को अपनी छुट्टियों का प्लान बनाते सुना ! वो आस्ट्रेलिया जा रहे थे थे ! खास बात तो ये क़ि वो भी ई ऍम आई पर ! जी हाँ एक ट्रवेल कंपनी ने उन्हें किस्तों में आस्ट्रेलिया घुमाने का वादा किया था ! ओवरबिज से उतरते वक़्त सहसा ही मुंह से बस एक बात निकली -

"मछुआरी है ज़िन्दगी " !!