Wednesday, September 22, 2010

मिली जो जिन्दगी तो पूंछेंगे !.....



वो ग़मे ज़िन्दगी से हार गया !

गया तो होके बेक़रार गया !!

इक वो था जो हमें समझता था !
वो यूँ गया जैसे सह्सवार गया !!

मैंने उसको दिखाए ख्वाब बहुत !
ये बहाना था जो बेकार गया !!

उसकी आँखों से दर्द झाँका था !
हौसले करके तार तार गया !!

उसके अहसान कुछ तो बाकी हैं !!
मुझे बना वो कर्जदार गया !!

मिली जो जिन्दगी तो पूंछेंगे !
क्या उसे हमसे नागवार गया !!

- कुलदीप अन्जुम


Friday, September 17, 2010

साँस तो उधार हो चुकी ..

आदमी कि हार हो चुकी
हर गली बजार हो चुकी

अब ख़ुशी क नाम भी नहीं
जिन्दगी गुबार हो चुकी

आ गयी ये कौन सी घडी
भूख कारोबार हो चुकी है

खुदा को क्या पता खबर
मौत रोजगार हो चुकी

हम जियें तो कैसे फिर जियें
साँस तो उधार हो चुकी

- कुलदीप अंजुम