Monday, October 4, 2010

बापू तुझे सलाम .....



वजूद मिट गया मगर कुछ निशां बाकी है !
घर तो ज़ल चुका है बस मकां बाकी है !!

मौसमे बहार में फस्ले गुल उज़ड़ गयी !
रकीब तो नहीं रहा पर दास्तां बाकी है !!

मेरे खिलाये फूल को वो अपना नाम दे गया !
यही बहुत है आजतक कि गुलिस्तां बाकी है !!

मैंने अपने दौर में वो कैसा ख्वाब देखा था !
गुल तो सब उज़ड़ गए बागवां बाकी है !!

- कुलदीप अन्जुम