Monday, September 28, 2009
ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है
ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है
अंजाम खुदा जाने अपना बस प्रयास है
जिंदगी में मुकम्मल सा कुछ भी नहीं
जिदगी हर पल बस एक कयास है
आदमी का तो अपना है कुछ भी नहीं
किसी का बदन है किसी का लिबास है
वो कब तक जियेगा सरे गिर्दाब रहकर
उसकी कश्ती का हर शख्स उदास है
- कुलदीप अन्जुम
Friday, September 18, 2009
हमारे दामन में तो केवल दिलो की निस्बत थी ...
जब तक मैं रस्ते में था, हर शक्श मेरा अपना था
जो मिले मुकाम पर उनकी आँखों में बड़ी गैरत थी
फिरते रहे लेकर नफ़रत औ हवस , शहर ब शहर
और आज कह रहे हो कि वो भी एक हिजरत थी
कोई मुझे बताये कि आखिर मैं हँसता क्यूँ नहीं
मैं पिछली बार जब हंसा था वो शबे फुरकत थी
सुना है खुदा भी अब हो गया है बेपरवाह बेमेहर
एक अरसे से हमने भी ना मांगी कोई मन्नत थी
तुम्ही बताओ हम कैसे अमीर हो जाते अन्जुम
हमारे दामन में तो केवल दिलो की निस्बत थी
- कुलदीप अन्जुम
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