Monday, September 28, 2009

ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है


ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है
अंजाम खुदा जाने अपना बस प्रयास है

जिंदगी में मुकम्मल सा कुछ भी नहीं
जिदगी हर पल बस एक कयास है

आदमी का तो अपना है कुछ भी नहीं
किसी का बदन है किसी का लिबास है

वो कब तक जियेगा सरे गिर्दाब रहकर
उसकी कश्ती का हर शख्स उदास है

- कुलदीप अन्जुम

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