निजाम के बदलने के साथ
रवायतें बदलने की रस्म में
सब कुछ तेज़ी से बदला
पिछली बार की तरह ....
खेत खेत जाके
ढूंढा गया गेंहू
उखाड़ फेंकने के लिए
रोपा गया कृपापात्र गुलाब.....
उस अधमरे गेहूं के लिए
कोई और जगह न थी
सिवाए मेरे
कविता के छोटे से खेत के
जो उसे जिंदा तो रख सकता था
खुश नहीं ......!!
- कुलदीप अंजुम
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