Tuesday, June 12, 2012

गेंहूँ बनाम गुलाब




निजाम के बदलने के साथ
रवायतें बदलने की रस्म में 
सब कुछ तेज़ी से बदला 
पिछली बार की तरह ....
खेत खेत जाके 
ढूंढा गया गेंहू 
उखाड़ फेंकने के लिए 
रोपा गया कृपापात्र गुलाब.....
उस अधमरे गेहूं के लिए
कोई और जगह न थी 
सिवाए मेरे 
कविता के छोटे से खेत के 
जो उसे जिंदा तो रख सकता था 
खुश नहीं ......!!

- कुलदीप अंजुम 

No comments:

Post a Comment