Friday, November 6, 2009

ख़ुद अपने गरीबां को चाक किए बैठा था...


ख़ुद अपने गरीबां को चाक किए बैठा था
चुपके चुपके ही सभी अश्क पिए बैठा था

मुस्कुरा देता था वो हर एक खुशी पे मेरी
दिल के इक कोने में सैलाब लिए बैठा था

उसकी तकलीफों ने सब होशो ख़बर छीन लिया
लोग कहते रहे वो फ़िर आज पिए बैठा था

यूँ लगाता रहा मरहम वो मेरे जख्मों पर
और ख़ुद अपने सभी जख्म सिये बैठा था

वक्त जालिम का उसपे कुछ असर ही नही
वो तो हर लम्हा ही इक उम्र जिए बैठा था

- कुलदीप अन्जुम

5 comments:

  1. yun lagata raha marham wo mere zakhmon par ........

    waah kamaal ka sher

    wo to har lamha hi ik umr jiye baitha tha.......

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  2. बहुत बढि़या लिखा है.....


    यूँ लगाता रहा मरहम वो मेरे जख्मों पर
    और ख़ुद अपने सभी जख्म सिये बैठा था

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  3. श्रधा दी
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया
    आपका स्नेह हमेशा ही लिखने को प्रेरित करता है

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  4. परमजीत सर
    बहुत बहुत शुक्रिया
    मुझे ख़ुशी है की आप हमारे नियमित पाठक हैं

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