राही फिर अकेला है
आजा ज़िन्दगी आज फ़िर तुझे पुकारता हूँ मैं , कि राही फ़िर अकेला है...........
Sunday, April 22, 2012
एक *लारवा ने
कितनी कोशिश की
बार बार गिरा ...उठा
किन्तु बन न सका तितली
वक़्त से पहले .....
- मत्शुओ बाशो
* कैटरपिलर
अनुवाद -कुलदीप अंजुम
1 comment:
ANULATA RAJ NAIR
Monday, April 23, 2012 1:05:00 PM
वाह!!!!!
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वाह!!!!!
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