Sunday, April 22, 2012


एक *लारवा ने 
कितनी कोशिश की 
बार बार गिरा ...उठा 
किन्तु बन न सका तितली 
वक़्त से पहले .....

- मत्शुओ बाशो 

* कैटरपिलर 

अनुवाद  -कुलदीप अंजुम 

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