Tuesday, November 3, 2009

इक बार बयां की सच्चाई ....................................


इक बार बयां की सच्चाई
जुबां में छाले अब तक हैं

आग लगे इक अरसा बीता
रंग घरों के काले अब तक हैं

फाकाकश के मुंह में जाने को
बेचैन निवाले अब तक हैं

जो जख्म दिया है अपनों ने
उस दर्द को पाले अब तक हैं

वजूद बचाने को दुनिया में
हम खुद को ढाले अब तक हैं

छोड़ दिया तो लौटना क्या
मेरे दर पर जाले अब तक हैं

नज़्म लिखू या ग़ज़ल कहूँ
क्या चाहने वाले अब तक हैं

-कुलदीप अन्जुम

6 comments:

  1. जो जख्म दिया है अपनों ने
    उस दर्द को पाले अब तक हैं


    -बेहतरीन..दिल को छूती हुई...

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  2. शोभित जी तहे दिल से आभार की अपने नाचीज को वक़्त दिया

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  3. समीर अंकल
    आप का बहुत बहुत शुक्रिया

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