Saturday, October 24, 2009

मेरी परछाई ....


जब भी हाथ बढ़ाऊं
तुझे छूने को
तू दूर खिसक जाती
और जब ......
हो जाऊँ परीशां
दूर जाने की करूँ
कोशिश ....
तू चली आती है
रिझाने को पीछे -पीछे
कर्त्तव्य से करने को
विमुख
बदलते वक़्त के साथ
बदलती हूई
तू भी बेवफा
हर शक्श की तरह
ऐ मेरी परछाई !

- कुलदीप अन्जुम

15 comments:

  1. ऐसी ही होती है प्यार की परछाई........अतिसुन्दर!

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  2. शुक्रिया वन्दना जी
    आप यहाँ तक आयीं
    तहे दिल से आभार

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  3. ओम जी अपने बिलकुल सही कहा
    बहुत बहुत शुक्रिया

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  4. शायद कुछ खोया --- नहीं नहीं पाया है
    परछाईयाँ पीछा नहीं छोडती है.

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  5. बहुत सही .. सुदर अभिव्‍यक्ति !!

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  6. बदलते वक़्त के साथ
    बदलती हूई
    तू भी बेवफा
    हर शक्श की तरह
    ऐ मेरी परछाई !


    -बहुत खूबसूरत अहसास.

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  7. वर्मा जी आपका बहुत बहुत आभार

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  8. waah kya baat hai
    tu bhi bewafa hai har shkash ki tarah
    meri parchaayi
    bahut khoobsurat nazm hui hai

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  9. क्षमा जी
    आपका पढना मुझे सबसे जादा प्रोत्साहित करता है

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  10. संगीता जी
    आपने नज़्म को पढ़ा
    बहुत अच्छी अनुभूति हुयी

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  11. समीर अंकल
    बहुत बहुत शुक्रिया

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  12. श्रधा दी
    स्नेह हेतु आपका आभार यूँही बनाये रखे

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  13. bahut khub bhaiyya... apni parchai bhi bewafa... maza aa gaya

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