Tuesday, May 26, 2009

"अंजुम" तुझे आता क्या है ?


गलतियाँ करके आसमान को तकता क्या है
जो उधर रहता है, उससे तू डरता क्या है

वह भी तो था कभी हमारी ही तरह ,
आज ऊँचाई पे है तो बात बदलता क्या है
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ये तो वो चीज है जो दबा के रख अपने सीने में ,
अपना किस्सा-ऐ-मोहब्बत दुनिया को सुनाता क्या है

यूँ तो हमको भी हैं उससे शिकवे कई ,
पर देखकर उसको मुस्कुराने में मेरा जाता क्या है

मुझे भरोसा है तुझपे बेपनाह ऐ जानेमन !
तू आज महफिलों में प्यार जताता क्या है

एक अरसा हो गया तुझसे मिले कर ले ऐतवार ,
पहली मुलाक़ात कि तरह अब भी आजमाता क्या है
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देख रहा है सब कुछ वह चुपचाप यूँ ही ऊपर से,
तू मंदिरों मस्जिद में शोर मचाता क्या है

आंधियां आ रही हैं बड़ी दूर से अरमान लेकर ,
तू पहले से ही अपने चिरागों को बुझाता क्या है

गर हिम्मत है तो अमीर औ काजियों को सता के दिखा ,
तू भी किसी मजबूर को आज सताता क्या है

गर आता है मज़ा तुझको भी सितम ढाने में ,
तो अपना घर फूंक , औरो के जलाता क्या है
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खोल दे बेफिक्र होकर आज मेरी कमजोरियों को ,
तू भी गैरों की तरह बात बनाता क्या है

पास आना है मेरे तो क्यों न आज खुल के मिल ,
दूर से देखकर हाथ हिलाता क्या है

जिनको सिखा दिया यहाँ हमने जिंदगी का हुनर ,
वही पूछते हैं आज कि "अंजुम" तुझे आता क्या है ?


- कुलदीप अन्जुम

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