Saturday, April 25, 2009

अनजानी राहों पर .......



अनजान रास्तो पर अनजान काफिले हैं ,
जानते नही कुछ फ़िर भी तो चल पड़े हैं ,

कोई नही है रहबर , न कोई रकीब मेरा ,
हर मोड़ पर यहाँ तो बस अजनबी खड़े हैं ,

न रहजनों का डर है न, कोई खलिश सी दिल में,

हर वक्त काफिले यहाँ लुटते ही जो रहे हैं,

कुछ तो गिला है मुझको फ़िर भी उन दोस्तों से ,

मेरे जनाजों में अक्सर हँसते वो क्यों रहे हैं ?

- कुलदीप अन्जुम

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