Sunday, June 28, 2009
शहर में रह गयी कितनी नफासत जानता हूँ
हो नहीं सकती खुदा कोई मूरत जानता हूँ
आदमी हूँ इंसानियत कि कीमत जानता हूँ
न दो हमको नसीहत ऐ अहले वफ़ा
मौज हूँ फिर भी वफ़ा की सीरत जानता हू
आंख फेर लेने से कुछ भी बदल नहीं जाता
मैं चश्मदीद हूँ शायद हकीक़त जानता हूँ
फिजां में घुल गयी हैं नफरतें न जाने कैसे
शहर में रह गयी कितनी नफासत जानता हूँ
आबाद रहना तुम ऐ मेरी बरबादियों के सबब
ये कौन कर रहा है शरारत जानता हूँ
-कुलदीप अन्जुम
Saturday, June 27, 2009
आदत हो गयी है मुझे
मयकशी अब इबादत हो गयी है मुझे
ग़मों में जीने की आदत हो गयी है मुझे
मजबूरियां मेरे दर पर बैठी हैं कुछ इस कदर
कि जिंदगी अब बगावत हो गयी है मुझे
सफ़र काटा है कुछ इस कदर तनहा हमने
कि तन्हाई की आदत हो गयी है मुझे
अब मैं ज़माने से कोई शिकवा नहीं करता
ठोकरें खाने की आदत हो गयी है मुझे
जो मुस्कुराता हूँ तो होठ जलते हैं
अब खुशदिली से अदावत हो गयी है मुझे
रोशनियों से अपना कुछ वास्ता ही कब था
अंधेरो में डगमगाने की आदत हो गयी है मुझे
नहीं हैं गम किसी अरमां के टूटने का अंजुम
अरमानो की खुदकुशी की आदत हो गयी है मुझे
-कुलदीप अन्जुम
Sunday, June 14, 2009
मजबूरियां मुझे इन्सान से बुत कर गयी हैं
तमन्नाएं सारी दिल से रुखसत कर गयी हैं
मजबूरियां मुझे इन्सान से बुत कर गयी हैं
क्या जरुरी है अंजुम का आदमी होना
जिम्मेदारियाँ अब मौसमे फुर्सत कर गयी हैं
-कुलदीप अन्जुम
दिल से कोई इंतकाम नहीं लेता
अब मैं सुबहो शाम तेरा नाम नहीं लेता
करता हूँ फैसले दिमाग से दिल से कोई काम नहीं लेता
भूल जाना ही तुम्हे बेहतर था शायद जिंदगी के लिए
यही सोच कर दिल से कोई इंतकाम नहीं लेता
-कुलदीप अन्जुम
Saturday, June 13, 2009
एक कठपुतली हूँ मैं ||
न कोई तकदीर
न ही कोई तस्वीर
दुसरों के इशारो पर
नाचने को मजबूर
एक कठपुतली हूँ मैं
ना मेरा कोई जज्बात
ना कोई विसात
दुसरों को सन्देश देती
खुद बेजुबान
एक कठपुतली हू मैं
मेरे आंसू मेरी खुशी
कभी मेरे थे ही नहीं
पर औरो को हंसने रोने को
मजबूर करती
एक कठपुतली हूँ मैं
कही और है मेरी डोर
लगातार तलाशती हूँ ठौर
सामने बैठी भीड़ के साथ
एकाकी पन से जूझती
एक कठपुतली हूँ मैं
-कुलदीप अन्जुम
Tuesday, June 2, 2009
मुस्कुरायेंगे कभी खुदकुशी के दरमियाँ
चुरायेंगे किसी का दिल ,हम शेर को चुराएँ क्या
चुरायेंगे एक ख़ुशी मुफलिसी के दरमियाँ
मुस्कुरा रहे हैं सब ,हम अभी से मुस्कुराएं क्या
मुस्कुरायेंगे कभी खुदकुशी के दरमियाँ
-कुलदीप अंजुम
शेर
क्या ज़माना कहता है उसकी चिंता अब नहीं अंजुम
की अब तो मेरा दिल भी मेरी तरफदारी नहीं करता
- कुलदीप अन्जुम
Monday, June 1, 2009
शेर
किसी का हमसफ़र नहीं , इसका नहीं गिला मुझे
पास जाऊंगा तो जल जाऊंगा, भा गया है फासला मूझे
-कुलदीप अन्जुम
मंजर मेरी बर्बादी का है
मैंने रोने को कहा तो खिल खिला कर हंस दिये
जब सबब पूछा तो बोले मंजर तेरी बर्बादी का है
-कुलदीप अन्जुम
दोस्त पुराना न मिला
जिसकी खातिर तुने अपना शहर छोडा अंजुम
वो इतनी तंग दिल निकली की ठिकाना न मिला
ओढ़ लिया जबसे हमने शिकायतों का कफ़न
तबसे कोई भी दोस्त पुराना न मिला
-कुलदीप अन्जुम
शेर
यूँ न बेरुखी से मिला करो तू कभी तो मेरा प्यार था
आज हो न हो हो मगर कभी तो मुझपे ऐतवार था
-कुलदीप अन्जुम
फर्जो को निभाकर देखो
बनते हो खुदा रोज कभी इंसान भी बनकर देखो
ऐ सडको पर हक मांगने वालो कभी फर्जो को निभाकर देखो
-कुलदीप अन्जुम
नज़्म : अब मुझे अपना पता याद नहीं
अब मुझे अपना पता याद नहीं
रहा करता था जो इन्सांन वहां ,
शायद जिन्दा है वो आज नहीं
उसकी हिम्मत तो देखिये साहब ,
मरते दम की कोई फरियाद नहीं
यूँ तो हरदम वो था परेशां सा ही
पर बना कभी ख़ुशी का तलबगार नहीं
-कुलदीप अन्जुम
देवता अब मंदिरों में नही रहते
काश कि इन्सां ये समझ पाता
कि देवता अब मंदिरों में नही रहते
वो तो भटकते फिरते हैं सडको पर बदहवास हालत में
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मयकदों में अब जामे मोहब्बत नही मिलता
पिलाई जाती है यहाँ शराब
तड़पकर मर जाने को
-कुलदीप अन्जुम
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