Saturday, June 27, 2009
आदत हो गयी है मुझे
मयकशी अब इबादत हो गयी है मुझे
ग़मों में जीने की आदत हो गयी है मुझे
मजबूरियां मेरे दर पर बैठी हैं कुछ इस कदर
कि जिंदगी अब बगावत हो गयी है मुझे
सफ़र काटा है कुछ इस कदर तनहा हमने
कि तन्हाई की आदत हो गयी है मुझे
अब मैं ज़माने से कोई शिकवा नहीं करता
ठोकरें खाने की आदत हो गयी है मुझे
जो मुस्कुराता हूँ तो होठ जलते हैं
अब खुशदिली से अदावत हो गयी है मुझे
रोशनियों से अपना कुछ वास्ता ही कब था
अंधेरो में डगमगाने की आदत हो गयी है मुझे
नहीं हैं गम किसी अरमां के टूटने का अंजुम
अरमानो की खुदकुशी की आदत हो गयी है मुझे
-कुलदीप अन्जुम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
aadat shabd bahut baar repeat ho gaya hai isme.
ReplyDeletenaye naye kaafiye istemaal karte to gazal mein aur nikhaar aa jata...
Waise nice blog...