Sunday, June 14, 2009

मजबूरियां मुझे इन्सान से बुत कर गयी हैं


तमन्नाएं सारी दिल से रुखसत कर गयी हैं
मजबूरियां मुझे इन्सान से बुत कर गयी हैं

क्या जरुरी है अंजुम का आदमी होना
जिम्मेदारियाँ अब मौसमे फुर्सत कर गयी हैं


-कुलदीप अन्जुम

4 comments:

  1. बहुत खूब.......जनाब......आपकी शायरी का जलवा छा गया है........मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.......

    अक्षय-मन

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  2. Behad sundar...! Aur koyee alfaaz nahee hain mere paas !

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  3. ... बहुत खूब, दोनों ही अभिव्यक्तियाँ बेहद प्रभावशाली हैं !!!!

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