हर गली बज़ार हो चुकी !!
अब ख़ुशी क नाम भी नहीं !
ज़िन्दगी गुबार हो चुकी !!
आ गयी ये कौन सी घड़ी !
भूख कारोबार हो चुकी !!
है खुदा को क्या पता खबर !
मौत रोजगार हो चुकी !!
देखकर दरख़्त जल गए !
शाख छायदार हो चुकी !!
अब जियें तो कैसे फिर जियें !
साँस तो उधार हो चुकी !!
-- कुलदीप अंजुम
bhaut hi acchi.....
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