Friday, February 10, 2012


आदमी कि हार हो चुकी !
हर गली बज़ार हो चुकी !!

अब ख़ुशी क नाम भी नहीं !
ज़िन्दगी गुबार हो चुकी !!

आ गयी ये कौन सी घड़ी !
भूख कारोबार हो चुकी !!

है खुदा को क्या पता खबर !
मौत रोजगार हो चुकी !!

देखकर दरख़्त जल गए !
शाख छायदार  हो चुकी !! 

अब जियें तो कैसे फिर जियें !
साँस तो उधार हो चुकी !!


-- कुलदीप अंजुम 

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