Tuesday, February 23, 2010

जंग जिंदगी से

इन्सान और जिंदगी
क़े बीच की जंग
शाश्वत और ऐतिहासिक है
यदि केवल कर्म ही
इस प्रतिस्पर्धा का
आधार होता तो
सुनिश्चित सी थी
इन्सान की जीत ,
मगर इस जंग के
अपने कुछ एकतरफा उसूल हैं ,
भूख , परिवार ,परम्पराएं
मजबूरी ,समाज, जिम्मेदारियां
खींच देते हैं
हौसलों क़े सामने
इक लक्छ्मन रेखा
और फिर
कर्म का फल भी
तो हमेशा नहीं मिलता ,
लटकती रहती है
भाग्य की तलवार
दमतोड़ देते हैं हसले
घट जाती है
जीवटता के
जीतने की प्रत्याशा

- कुलदीप अन्जुम

3 comments:

  1. hmm sach kaha hai
    karm ka fal hamesha nahi milta
    bhagya ki talvaar se housle mar jaate hain

    bahut dino ke baad tumhe padhna
    aur gahri soch mein doobna achcha laga

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  2. भूख , परिवार ,परम्पराएं
    मजबूरी ,समाज, जिम्मेदारियां
    खींच देते हैं
    हौसलों क़े सामने
    इक लक्छ्मन रेखा
    Kitna sty hai!

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  3. सही और तर्कसंगत
    बात कही।
    बहुत अच्छी रचना।

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