इन्सान और जिंदगी
क़े बीच की जंग
शाश्वत और ऐतिहासिक है
यदि केवल कर्म ही
इस प्रतिस्पर्धा का
आधार होता तो
सुनिश्चित सी थी
इन्सान की जीत ,
मगर इस जंग के
अपने कुछ एकतरफा उसूल हैं ,
भूख , परिवार ,परम्पराएं
मजबूरी ,समाज, जिम्मेदारियां
खींच देते हैं
हौसलों क़े सामने
इक लक्छ्मन रेखा
और फिर
कर्म का फल भी
तो हमेशा नहीं मिलता ,
लटकती रहती है
भाग्य की तलवार
दमतोड़ देते हैं हसले
घट जाती है
जीवटता के
जीतने की प्रत्याशा
- कुलदीप अन्जुम
hmm sach kaha hai
ReplyDeletekarm ka fal hamesha nahi milta
bhagya ki talvaar se housle mar jaate hain
bahut dino ke baad tumhe padhna
aur gahri soch mein doobna achcha laga
भूख , परिवार ,परम्पराएं
ReplyDeleteमजबूरी ,समाज, जिम्मेदारियां
खींच देते हैं
हौसलों क़े सामने
इक लक्छ्मन रेखा
Kitna sty hai!
सही और तर्कसंगत
ReplyDeleteबात कही।
बहुत अच्छी रचना।