Saturday, July 18, 2009

क्यों ना आज अपना आशियाँ जलाया जाये ....

दोस्तों वैसे तो छुट्टी पर था लेकिन क्या करें आना पड़ा ...............पिछली ग़ज़ल (मूझे सामाने आराइश बनाया जा रहा है क्यूँ ?.........)से शिकायत थी की उर्दू की जटिलता बढ़ गयी थी इसलिए इसको एकदम आसान शब्दों में लिखा है ...........आपकी प्रतिक्रियाएं ज्यादा चाहूँगा क्युंक ओवर टाइम में कुछ ज्यादा मेहनताना मिलता हैं............

चलो क्यों ना आज अपना आशियाँ जलाया जाये
खुद को करके बर्बाद इस दुनिया को हंसाया जाये

ढूंढ़ रही हैं एक अरसे से बरबादियाँ मुझको
आज उनको खुद ही घर का पता बताया जाये

शायद मुरब्बत है उनको जिंदगी के अंधेरों से
इस अँधेरी रात में चिरागों को बुझाया जाये


साकी ओ मीना अब आ भी जाओ पास मेरे
हिज्र के मारों को अब और ना सताया जाए

कोई नहीं है शिकवा मुझको मेरी रुसवाइयों से
जब तक मुफलिसी को नुमाइश ना बनाया जाये

जला ही देगा एक दिन दुनिया आकर आजिज़
किसी शोले को एक हद तक ही भड़काया जाये

देते रहे हैं अब तलक जिसमें पानी बड़ी ही मौज से
वक़्त की ताकीद अब उसी गुलशन को सुखाया जाये

-कुलदीप अन्जुम

7 comments:

  1. अच्चा लिखते हो कुलदीप भाई.

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  2. अच्छा लिखते हो कुलदीप भाई

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  3. शानदार विचार. वक्त से पहले की ज्यादा समझदारी.............
    बधाई.

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  4. काफी खूब लिखा हैं , अंजुम जी
    इक अश्यार मेरी तरफ से .......

    वेसे सब जानते हो तुम मेरे बारे में खुदा
    क्यों ना तुझसे भी कुछ आज छुपाया जाये !

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