Saturday, July 4, 2009
कुछ फुटकर शेर
दोस्तों ये शेर कोई खास नहीं हैं बस आपको पढाने का दिल किया तो यहाँ तक ले आयाकेवल भावनाओ को समझियेगा
बैठे हैं मस्जिदों में खुदाई का कफ़न ओढे
कैसे करते हैं इमामत जानता हूँ
दोस्तों छोड़ दो मूझे चले जाओ कहीं दूर
दोस्ती में छिपी है अदावत जानता हूँ
पिछली महफ़िल में मिला था वो बड़ा ही मुस्कराकर
पड़ गयी अब उसको मेरी जरुरत जानता हूँ
आज वोह सारा दिन मेरी फिकर लेते रहे
यही है उनका अंदाजे शिकायत जानता हूँ
यूँ ही कोई किसी पर मुफ्त में मेहरबां नहीं होता
क्यों कर रहा है वो मुझपे इनायत जानता हू
लोग मिलते हैं यहाँ चेहरे पर चेहरे लगाकर
किसके दिल में है कितनी शराफत जानता हूँ
जी चाहता है बन जाऊ सियासतदां देखकर आलम
कैसे बनाते हैं माहौल ऐ नफरत जानता हूँ
अन्जुम कैसे सुन लूँ मैं तेरे दिल की सदा
अब तो मैं भी मोहब्बत है एक तिजारत जानता हूँ
- कुलदीप अन्जुम
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bahut achha likha hai Sir Ji aapne...itni saari aspects cover huyee...
ReplyDeletesajal ji shukria
ReplyDeleteतुमने दिल की बात कह दी आज ये अच्छा हुआ ................
ReplyDeleteवीनस केसरी
hum tumhe apna samajhte the bada dhokha hua
ReplyDeletehahaha
shukria venus ji
Bhut khub sir
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