Friday, July 3, 2009
बस मौन ही प्रतिकार है
माँ अब अक्सर
खामोश रहा करती है
भटकती रहती है शून्यता
उसके चेहरे पर
एकदम शांत
निस्तब्ध
पूछ ही बैठाएक दिन
जिज्ञासा के सबब
एकाएक ये कैसा परिवर्तन
विचारो का इस भांति विसर्जन
अब न ही कोई विरोध
न ही कोई प्रतिरोध
कोई हलचल क्यों नहीं
कोई चर्चा क्यों नहीं
जैसे ख़त्म हो गयी हो
सृजनान्त्मकता
आत्मा की मौलिकता
क्या मान बैठी हो हार ?
बुदबुदा उठे उनके होठ
कुछ अनमने पन से
की हालात नहीं बदले तरीका बदल गया है
अब मेरे जीने का सलीका बदल गया है
अब नहीं शब्दों कि मनुहार है
बस मौन ही प्रतिकार है
हाँ अब मौन ही प्रतिकार है
- कुलदीप अन्जुम
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