Friday, May 29, 2009
क्या ग़म भी इंसानों के कद के हिसाब से हल्के भारी होते हैं ?
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गर मर जाए कोई ख्याति लब्ध
कंठ तक गन्दगी में संलिप्त
तो दुःख कुछ भारी होता है
मीडिया कवर करता है
मंत्री संदेश भेजता है
या ख़ुद आता है
कुछ फूल लेकर
कशीदे काढता है
घिनौने कारनामो को छुपाते हुए
बुरे को अच्छा बताते हुए
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अब दूसरा परिदृश्य देखिये
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गर मर जाए किसी झोपडी का कोई गरीब
उम्र भर रोटी जिसे ना हुई हो नसीब
उसकी बिलखती विधवा को देखकर
कसे जाते हैं तंज
देखो इसकी नौटंकी
कुलटा है यह
उसके आंसू का इतना बड़ा तिरस्कार
नीचता का सरे आम सत्कार
भले मरा हो बीमारी और भुखमरी से
इलजाम तो शराब के सर ही आना है
लोग उत्सुक हैं यहाँ
उसकी मजबूरियों के किस्से सुनाने को
उसे बेफिजूल बताने को
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-कुलदीप अन्जुम
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