
भावनाओ का समंदर अब थामे थमता नही ,
क्या करूं और कहां जाऊँ, दिल कही लगता नहीं
हर अश्क तेरी याद का अब पलकों पर रुकता नही,
कैसी यह बेबसी की इनको मैं गिरा सकता नही
सोचा था एक जहाँ होगा अपने खयालो का भी यहाँ ,
पर क्या करूं कि मैं कुदरत को बदल सकता नही
अब नही मुझको यकीं है जिंदगी सी चीज में,
ए खुदा मैं अपनी मर्ज़ी से मर भी तो सकता नही
कह रहे हैं सब यहाँ कि छोड़ दो यादों को अब,
पर अपने फर्जो- बफाओं से मैं मुकर सकता नही
हो गई है इन्तिहाँ अब मेरे सब्र कि " अंजुम ",
ग़म का यह सैलाब अब रोके मेरे रुकता नही
भावनाओ का .....................................
- कुलदीप अन्जुम
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