
मेरी आवारगी भी अब मुझे अच्छी नही लगती,
तेरी दीवानगी भी अब मुझे अच्छी नही लगती,
ज़ुल्म जो कर दिए हमने कभी न चाहकर भी,
उन परअपनी शर्मिंदगी भी अच्छी नही लगती,
ज़ोर देता है की तू अक्सर अपने अल्फाज़ पर,
पर मुझे तेरी आवाज़ भी अच्छी नही लगती,
रोज़ ही होता है यहाँ मेरा खूने - जिगर कि,
अब मुझे कोई चोट भी तीखी नही लगती ,
तू पुराने जख्मो को भरने कि कोशिश न कर
कि अब मुझे मरहमे-वफ़ा अच्छी नही लगती,
मैं चला हु अब बंद - तंग गलियों की तरफ़ ,
की अब मुझे आवो- हवा अच्छी नही लगती,
घिर गया है "अंजुम" अपने झूठों में कुछ इस कदर,
कि कोई भी बात मुझे सच्ची नही लगती
- कुलदीप अन्जुम
bahut khub " Anjum" Sahib..
ReplyDeletesir me to apka fan ho gaya hu . are kuch akal muzjhe bhi dedo to me bhi ladkiyo ko impress kar lunga
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