मैंने ईश्वर को देखा है !
जाड़े कि निष्ठुर रातों में !
गहरी काली बरसातों में !
कंपकपी छोडती काया में !
पेड़ों कि धुंधली छाया में !
ज़र्ज़र कम्बल से लड़ते !
मैंने ईश्वर को देखा है !!
फुटपाथों पे जीते मरते !
सांसों की गिनती करते !
भूख मिटाने की खातिर !
मजबूरी में जो हुए शातिर !
जाने किससे धोखा करते ?
मैंने ईश्वर को देखा है !!
कुछ टूटी सी झोपड़ियों में !
भूखी सूखी अंतड़ियों में !
बेबस से ठन्डे चूल्हों में !
ताज़े मुरझाये फूलों में !
कुछ आखिर मद्धम साँसों में !
ठंडी पड़ती सी लाशों में !
इंसानियत खोजते दुनिया में !
मैंने ईश्वर को देखा है !!
- कुलदीप अंजुम
bhaut hi sarthak abhivaykti....
ReplyDeleteइश्वर का अभिप्राय भी यही है हर जीव में उसके दर्शन करे हम...
ReplyDeleteतभी तो इंसानियत की प्राण प्रतिष्ठा होगी!
सुंदर कविता!
बहुत बहुत शुक्रिया ......ज़र्रानवाज़ी के लिए !
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