ख़ुद अपने गरीबां को चाक किए बैठा था...
ख़ुद अपने गरीबां को चाक किए बैठा था चुपके चुपके ही सभी अश्क पिए बैठा था मुस्कुरा देता था वो हर एक खुशी पे मेरी दिल के इक कोने में सैलाब लिए बैठा था उसकी तकलीफों ने सब होशो ख़बर छीन लिया लोग कहते रहे वो फ़िर आज पिए बैठा था यूँ लगाता रहा मरहम वो मेरे जख्मों परऔर ख़ुद अपने सभी जख्म सिये बैठा था वक्त जालिम का उसपे कुछ असर ही नही वो तो हर लम्हा ही इक उम्र जिए बैठा था - कुलदीप अन्जुम
yun lagata raha marham wo mere zakhmon par ........
ReplyDeletewaah kamaal ka sher
wo to har lamha hi ik umr jiye baitha tha.......
बहुत बढि़या लिखा है.....
ReplyDeleteयूँ लगाता रहा मरहम वो मेरे जख्मों पर
और ख़ुद अपने सभी जख्म सिये बैठा था
श्रधा दी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आपका स्नेह हमेशा ही लिखने को प्रेरित करता है
परमजीत सर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
मुझे ख़ुशी है की आप हमारे नियमित पाठक हैं
ग़ज़ल सुन्दर है ! बधाई !
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