इक बार बयां की सच्चाई ....................................
इक बार बयां की सच्चाई जुबां में छाले अब तक हैं आग लगे इक अरसा बीता रंग घरों के काले अब तक हैं फाकाकश के मुंह में जाने को बेचैन निवाले अब तक हैं जो जख्म दिया है अपनों ने उस दर्द को पाले अब तक हैं वजूद बचाने को दुनिया मेंहम खुद को ढाले अब तक हैं छोड़ दिया तो लौटना क्या मेरे दर पर जाले अब तक हैं नज़्म लिखू या ग़ज़ल कहूँ क्या चाहने वाले अब तक हैं -कुलदीप अन्जुम
kya khoob gazal hai ... sachmuch lajbaab
ReplyDeleteजो जख्म दिया है अपनों ने
ReplyDeleteउस दर्द को पाले अब तक हैं
-बेहतरीन..दिल को छूती हुई...
शोभित जी तहे दिल से आभार की अपने नाचीज को वक़्त दिया
ReplyDeleteBahut acche Shayar!!!
ReplyDeleteसमीर अंकल
ReplyDeleteआप का बहुत बहुत शुक्रिया
शुक्रिया नुक्ता जी
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