मेरी परछाई ....
जब भी हाथ बढ़ाऊं तुझे छूने को तू दूर खिसक जाती और जब ......हो जाऊँ परीशां दूर जाने की करूँ कोशिश ....तू चली आती है रिझाने को पीछे -पीछे कर्त्तव्य से करने को विमुख बदलते वक़्त के साथ बदलती हूई तू भी बेवफा हर शक्श की तरह ऐ मेरी परछाई ! - कुलदीप अन्जुम
WAAH.........BAHUT HI UMDA.
ReplyDeleteऐसी ही होती है प्यार की परछाई........अतिसुन्दर!
ReplyDeleteशुक्रिया वन्दना जी
ReplyDeleteआप यहाँ तक आयीं
तहे दिल से आभार
ओम जी अपने बिलकुल सही कहा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
शायद कुछ खोया --- नहीं नहीं पाया है
ReplyDeleteपरछाईयाँ पीछा नहीं छोडती है.
Parchhayee ko kab kaun pakad payaa?
ReplyDeleteबहुत सही .. सुदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबदलते वक़्त के साथ
ReplyDeleteबदलती हूई
तू भी बेवफा
हर शक्श की तरह
ऐ मेरी परछाई !
-बहुत खूबसूरत अहसास.
वर्मा जी आपका बहुत बहुत आभार
ReplyDeletewaah kya baat hai
ReplyDeletetu bhi bewafa hai har shkash ki tarah
meri parchaayi
bahut khoobsurat nazm hui hai
क्षमा जी
ReplyDeleteआपका पढना मुझे सबसे जादा प्रोत्साहित करता है
संगीता जी
ReplyDeleteआपने नज़्म को पढ़ा
बहुत अच्छी अनुभूति हुयी
समीर अंकल
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
श्रधा दी
ReplyDeleteस्नेह हेतु आपका आभार यूँही बनाये रखे
bahut khub bhaiyya... apni parchai bhi bewafa... maza aa gaya
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