राही फिर अकेला है
आजा ज़िन्दगी आज फ़िर तुझे पुकारता हूँ मैं , कि राही फ़िर अकेला है...........
Wednesday, July 8, 2009
नासमझ अमीरी .....
कभी मखमली गद्दों पर गुलकती
सुगन्धित इत्रों से महकती
अमीरी पर इतराती
गरीबों पर बिदकती
उन्हें दूर झटकती
ख्वाबो ख्यालों में जीती
नासमझ अमीरी
-कुलदीप अन्जुम
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