Wednesday, July 8, 2009

बिखरता बचपन


छोटे छोटे कन्धों पर
जिंदगी का भारी बोझ उठाती
खुले में ठण्ड भरी रात बिताती
कांपती ठिठुरती

ठंडी हवा से सिहरती
बुनियादी चीजों से मरहूम
दो रोटी से भी दूर
नादान बिखरता बचपन

-कुलदीप अन्जुम

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