Thursday, October 8, 2009
कर लिया हमने मसर्रत का इंतजाम है ...
हवाए - सर्द को अब मेरा यही पैगाम है
कर लिया हमने मसर्रत का इंतजाम है
दवाए तरके -ताल्लुकात ले चुका हूँ मैं
मरीजे - इश्क को अब पूरा आराम है
देवता रखने लगे हर शख्श के कद का हिसाब
क्या मसीहाई भी हूई दौलत ही की गुलाम है
दूर हट नापाक ऐ शेखो शाह के कशीदाकर
किसी पेशगी का मुन्तजिर नहीं मेरा कलाम है
क्या हुआ की बदल गयी शहर की आवो हवा
सहमी हूई हर सहर है दहशतजदा हर शाम है
हवाए तरक्की ने मेरा आंगन बुहारा इस कदर
की अब नहीं मिलता यहाँ कोई निशाने गाम है
- कुलदीप अन्जुम
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good job....
ReplyDeletewelll ... jitna main jaanta hu tumhen ..
ReplyDeleteu r a fantastic writer..
aur ye masarrat ka intzaam bhi khoob kiya hai tumne..
its always pleasing to read u Anjum sahab..
likhte rahiye .. :-)
nice one ..
ReplyDeleteur compositions r beautiful!
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