ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है
ना कोई उम्मीद है ना ही कोई आस है अंजाम खुदा जाने अपना बस प्रयास है जिंदगी में मुकम्मल सा कुछ भी नहीं जिदगी हर पल बस एक कयास है आदमी का तो अपना है कुछ भी नहीं किसी का बदन है किसी का लिबास है वो कब तक जियेगा सरे गिर्दाब रहकर उसकी कश्ती का हर शख्स उदास है- कुलदीप अन्जुम
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