Sunday, August 23, 2009
अंजुमन में मेरी वो खामोशी शायद उस वक़्त की जरुरत थी ...
तुझसे इकरार जो किया था कभी, कोई रब्त नहीं वहशत थी
अंजुमन में मेरी वो खामोशी शायद उस वक़्त की जरुरत थी
वो बदल गया इज्जत औ दौलत देखकर तो इतनी हैरत क्या
रंग बदलना, तो उस महफ़िल के हर शख्श की फितरत थी
बिखर गया जो मैं खुद ब खुद ही , तो दोष किसको दूँ
ये कोई और नहीं शायद, मेरे अपने किये की दहशत थी
गम दिए किसी ने तो उससे मैं कोई शिकवा भी कैसे करूँ
ऐ दोस्त मुझे भी तो अपना घर सजाने की बड़ी हसरत थी
यारा वक़्त वो चीज नहीं , ,,,,,जो हर पल किसी के साथ रहे
जो आज बिकते हैं सरे बाज़ार, कभी उनकी भी बड़ी इज्जत थी
- कुलदीप अन्जुम
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Acchi... rachna..bahut khub.. aapki ghazalein aur rachnayein mujhe kafi pasand aati hai... isliye.. aapke blogspot pe hamesha visit karta hun.. apne favourite me add kar liya hai..
ReplyDeleteisi tarah likhte rahein.. meri subhkamnayein hai
Govind Sharma,
Jamshedpur