Tuesday, April 28, 2009

नज़्म : इक समझौता ज़िन्दगी से ..........



हम सरे-राह ज़िन्दगी की उंगली पकड़ चलते रहे ,
न ही डर लगा न चौंके कभी ,बस मुकामों तलक बढ़ते रहे,

कभी शिकवा न किया हमने बेदर्द ज़माने से ,
कोई चूका भी नही हमे पल पल आजमाने से ,
हम मगर खामोशी से अपने आप से लड़ते रहे ,

अब लिया है ओढ़ हमने बेहयाई का कफ़न,
अब भला , कोई भी , कुछ भी , मुझको क्या कहता रहे ,

यूँ तो हमपर ज़ुल्म का एक सिलसिला चलता रहा ,
और हम बेचारगी से हर सितम सहते रहे,

पर लगा "अंजुम " ये अक्सर रास्ता है कुछ अजब ,
देखकर न कोई किनारा, मौन हो बहते रहे,
न ही कुछ कहा ,न ही कुछ सुना, चुपचाप देखते रहे

- कुलदीप अन्जुम

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